टूटने लगूं जब, जीवन की डगर पर ,
जोड़ कर एक सार कर देना तुम।
विपदाओं से हार कर,थक जाऊं जब,
तब हौंसला बनकर ,हिम्मत देना तुम।
साथ चलते हुए राह में, भटक जाऊँ जब ,
बन पथिक मेरे सहचर ,पथ-प्रशस्त देना तुम।
खुद के दुर्भाग्य पर, बिखर जाऊं रो-रोकर जब,
समेट कर अपनी मलयजी ,बॉहों का प्यार देना तुम।
दूर होकर तुमसे, कभी सो ना पाऊं जब,
ख्वाब बनकर मेरी ऑखों में आ जाना तुम।
खो जाऊं कभी अश्कों के ,समुन्दर में जब,
मोतियों की माला में, पिरो देना तुम।
जीवन के संघर्षो में तन्हा, झुलसने लगूॅ जब,
स्नेह का नव पेड़ बन ,शीतल छांव देना तुम।
मुरझाने लगे जीवन की ,अधखिली बगिया जब,
प्यासे होठों की मुस्कान बन, खिलखिला जाना तुम।
चांदनी रातों में तन्हा , खुद को पाऊँ जब,
चांद बन मेरी अंगनाई में, आ जाना तुम।
लिखने बैठूं गीत , ग़ज़ल, कविता कोई जब,
कागज ,कलम ,दवात , हाथों को थमा देना तुम।
बक बक करके दुःखने लगे सिर मेरा जब,
अमृतांजन बन माथे पर, शीतलता देना तुम।
रुठ कर हो जाऊं दूर कभी जब,
चूमकर माथे पर प्यार,स्नेह देना तुम।
मिलने को हो आतुर, प्रिय मन मेरा जब ,
लेकर अवकाश ,चले आना तुम।
प्यारे बिट्टू को हो खेलने का मन जब,
खुद बच्चा बनकर ,संग खेल देना तुम।
घोलें रिश्तों में कड़वाहट ,कोई अजनबी जब,
मिठास बनकर मेरे जीवन को, अमृत बना देना तुम।
उखड़ने लगें ,यादों के पन्ने जब,
ख्यालातों को नये अल्फ़ाज़,सिखा जाना तुम।
खलने लगे कभी,मुझको मेरे यारों की कमी,
दोस्त बनकर मेरे हमदम, वफादारी निभा जाना तुम।
मर्यादाओं को मेरी पार करने लगे कोई जब,
बनकर मेरे रक्षक , दायित्व निभा जाना तुम।
हृदय को रिक्तियां ,महसूस होने लगे जब,
मेरे भीतर पूर्णता का ,एहसास करा जाना तुम।
हमसफ़र मेरे जीवन के ,सफर में साथ चलना तुम।
जब मैं चाहूँ,उम्मीदों पर खरा उतर जाना तुम।
आखिरी सांस ना हो जीवन में मेरे, कुछ इस तरह से साथ,सॉसों का निभा जाना तुम।।