मेरी आंखें जब तेरी आंखों से मिलती हैं तो तकरारें करती हैं-ग़ज़ल

मेरी आंखें जब तेरी आंखों से मिलती हैं तो तकरारें करती हैं
फिर मेरा कत्ले-दिल तेरी नज़रों की तलवारें करती हैं

जीकर भी तेरे मुंतज़िर थे मरकर भी तेरे मुंतज़िर हैं
अब तेरा इंतज़ार तुझे चाहने वालों की मजारें करती हैं

चलो चलें किसी मुहब्बत करने वाले की सरपरस्ती में
अमीरों की इस बस्ती में तो दिलों के फ़ैसले तलवारें करती
हैं

मेरी सफ़ीना मेरे हौंसले से महफ़ूज है तूफ़ान में मगर
लोग समझते हैं मेरी कश्ती की हिफ़ाज़त पतवारें करती हैं

ये सियासत है यहां वादे तो मिलते हैं मुरादें नहीं मिलती
चुनावों के बाद अवाम से वादाखिलाफ़ी तमाम सरकारें करती हैं


तारीख: 18.04.2024                                    धर्वेन्द्र सिंह




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