जाने किस कोने में पड़ी है मुरली,
उठाकर होठों से लगाओ न|
एक अरसा हो गया कोई धुन सुने,
मोहन मुरली बजाओ न |
जब से द्वारिकाधीश बने हो,
चक्र उठाए रहते हो |
गीता का ज्ञान बाँट दिया,
पर प्रेम के दो शब्द न कहते हो |
फिर से आओ वृंदावन,गोकुल,
नटखट कान्हा बन जाओ न |
गोपियों को फिर मुग्ध करो,
मोहन मुरली बजाओ न |
राधा रानी आज भी याद करती है,
तेरे साथ बिताए हुए पल |
तेरे आने की उम्मीद उसे है,
हँस के पीती है विरह का गरल |
फिर से माखनचोर बनकर,
राधा के घर आओ न |
राधिका का फिर नाम पुकारो,
मोहन मुरली बजाओ न |