नारी शक्ति

ख़ुद अँधेरे में रहती, दूसरों को रोशनी देती,
ख़ुद चिराग़ बन कर जलती रहती उम्र भर,
चारों तरफ़ का अंधकार समेट कर दूर करती,
ऐ नारी! तू कहाँ से लाती हैं इतनी शक्ति।
माना तुझ में हैं बसती स्वयं शक्ति
या फ़िर काली से ऊर्जा मिलती,
अंदर से हैं सब्र कहीं मही सी
या फ़िर तू ही कहीं मही तो नहीं,
हैरान हूँ देख तुझे,
आँसु छुपाकर भी प्यार में
कैसे अपना सर्वस्व लुटाती,
एक हाथ से अश्रु पोंछती,
एक हाथ से बनाती रोटी,
ऐ नारी! तू कहाँ से लाती हैं इतनी शक्ति।
अपने दुखों का बैठ सोचे,
इतना वक्त कहाँ तुझे,
कल की बातें आज भूल,
लग जाती फ़िर परिवार में,
प्रताड़ित हुई थी अभी सुबह ही तू,
अभी शाम को देखा मैंने तुझे हँसते,
घात हुआ था आत्मसम्मान पर तेरे,
कैसे बिसरा दिया तूने मुस्कुरा के,
चोट तो लगी थी गहरी बहुत,
भरने में थोड़ा तो वक्त लगाती,
ऐ नारी! तू कहाँ से लाती हैं इतनी शक्ति।
सब कहते हैं तू मज़े से टी वी देखती हैं,
घर पर दिन भर आराम से सोती हैं,
ये क्या, अभी तो ऑफ़िस से आयी हैं,
लग गयी बनाने खाना सब के लिए,

घर आँगन की सफ़ाई की थी,
अभी निकल परी कपड़े पसारने,
बच्चे को स्कूल से लाना हैं,
फ़िर माँजने हैं ढेर बर्तनों के,
मैंने तो तुझे देखा हर वक्त बस काम करते,
थोड़ा सुस्ता ले कमर है तेरी रात से अकरी,
ऐ नारी! तू कहाँ से लाती हैं इतनी शक्ति।
तुझे कहाँ समय कि तू सोचे अपनी,
रुक कर पूरा करे अपने अधूरे से सपने,
अपनी इच्छाओं को तो जैसे मार बैठी
और तू इतनी स्वार्थी भी तो नहीं,
बिना सिकन के कैसे कर लेती ऐसी चाकरी,
जिसमें हैं ना तारीफ़, ना छुट्टी, ना ही सैलरी,
बिना पदोन्नति के हमेशा एक ही दर्जे पे रहती,
और तू इतनी लोभी भी तो नहीं,
बिना रुके, बिना थमे, हर वक्त सबका आधार बनती,
ऐ नारी! तू कहाँ से लाती हैं इतनी शक्ति।
खुद पतंगा बन दूसरों के लिए जलती रहती,
दूसरों को इसका आभास तक ना होने देती,
इतनी प्रचंड प्रबल कैसे हैं तेरी आधार शक्ति,
ऐ नारी! तू कहाँ से लाती हैं इतनी शक्ति।


तारीख: 09.04.2024                                    कविता झा









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