जीवन में करुणा

जीवन एक वृक्ष है।
शतवर्षो तक डटकर
आँधी-तूफान 
झेलने को सज्ज है।।
इसकी विशालकाय
रीति-रिवाज, परम्पराओं की
काया अत्यंत घनी हैं।
फल, पुष्प, पत्तो की
कई पीढ़ियाँ इसने जनी हैं।।
इसपे प्रण, प्रतिज्ञा, लोभ
लालच नामक अनेक
शाखाओं का गण है।
और इस जीवन वृक्ष
का मुख्य आधार
'करुणा' इस की जड़ हैं।।
पर अब समाज से
करुणा सूख रही है।
स्वार्थ, लालसा के कारण
आखरी साँसे फूंक रही है।।
प्रण प्रतिज्ञाएं और स्वारथ
देखो लोगों में बढ़ रही है।
इन्हें तोड़कर मुझे बचा लो
करुणा तुमसे कह रही है।।
बिन करूणा के लोग
एक दूसरे से बँध नहीं पाते।
अपने लिए ही जीते हैं
और अपने लिए ही मर जाते।।
जब पीड़ा बढ़ जाये
तो निज-स्वार्थ छोड़ दो।
प्रण-प्रतिज्ञाएं अगर 
तोड़नी पड़े तो इन्हें तोड़ दो।।
शाखा का महत्व है,
किन्तु जड़ से अधिक नहीं।
जड़ ही अगर सूख गई तो
होगा वृक्ष का अस्तित्व नहीं।।
शाखाएं जो टूट गए
तो फिर उग आयेंगे।
एक बार जो जड़ सूखी
वृक्ष नहीं रह पाएंगे।।
इसलिए तुम करुणा को 
तल से सूखने मत दो।
इसको दया भाव प्रेम के
पानी से पोषित करते रहो।।


तारीख: 23.02.2024                                    सोनल ओमर









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