ओ अन्तर्मन के पुष्प,सदा तुम खिलते ही रहना,
चुभ जाए कांटे यदि उर में,शांत भाव से तुम सहना।
दुर्गम पथ की जीवन घाटी ,पग पग पर चिकनी है माटी,
अवरोधों की भीड़ लगी है, कोशिशें नाकाम पड़ी
चाहे जैसी ही स्थिति आए,दृग जल से आनन मत होना,
स्वार्थ वश साथी बहुत रे,दिल से दूर,सभी के डेरे।
कौन प्रतीक्षा करता किसकी,किश्ती अलग है सबकी।
अपने ग़म की आहों को, तुम केवल मुझसे ही कहना।
ठेंस लगे अन्तभावों को ,या ठोकर लगती पांवों को,
धोखा खा जाओ तो मन में सावधान रहना,
पग पग में कड़वे मीठे अनुभव जो हो,
स्मृतियों को मत ढहने देना
ओ अन्तर्मन के पुष्प।।