जब भी आईना देखता हूं
कोई और नजर आता है
वक्त बदला है
मेरा चेहरा भी बदल गया
सपाट आंखें और अधखुली पलके
बहुत कुछ इन्होने बदलते हुए देखा है
रंग बदलते हुए होठों के पास
बयां करने के लिए सब कुछ है
गतिशीलता ने जीवन में सब कुछ दिया
सुकून और आराम ने बहुत कुछ छीना है
उदास हूं सोचता हूं
क्या वह दौर फिर आ पाएगा
सोच भी बदली है
तस्वीर भी बदली है
निकल गया जो तीर तरकश से
वापस ना आएगा
बदले हुए जमाने में अब
ना वो स्वरूप वापस आएगा
ध्यान रहे यह मौका है
कुछ कर गुजरने का
मुश्किल जरूर है पर
अपना ही पुरुषत्व काम आएगा