साँसों से उठता है धुआँ ....
सूझे ना जायें, कहाँ ?
जल भी ना पाऊँ !
बुझ भी ना पाऊँ !
ये क्या मुझे हो गया ?
साँसों से उठता है धुआँ .....
दिन बना एक पंछी के जैसे
उड़े यहाँ कभी वहाँ
वक़्त की शाख़ों पे बैठा
एक पल यहाँ फिर वहाँ
मेरे ये पल और ये मेरी रातें
ठौर पायें कहाँ ???
साँसों से उठता है धुआँ .....
चाहा तुझको मैंने तो ऐसे
पाया हो मैंने - ख़ुदा।
तूने मुझको मुजरिम हूँ जैसे
दे दी मुझको सज़ा !
मेरी ये चाहे
मेरी ये आहे
जाए तो जाए कहाँ
साँसों से उठता है धुआँ .....