चलते रहना था चलते रहे सफर आसान न था दीये उम्मीदों के थे और लौ विश्वास की पत्थरों पर चलना था कोई छाँव ढूंढते रहे गंतव्य कोई न था बस पड़ाव ढूंढते रहे
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