सर रख कर जिसकी गोदी में वर्षो

सर रख कर जिसकी गोदी में वर्षो,
सुख दुःख में हंसा व रोया है।
आज बिलखती बेटी के संग वो
हाँ उसी की लाश को ढोया है।।

चार कंधो क्या सुकून क्या होता है
जो इक काँधे ने दिलाया है।
मांझी, मांझी ही बन बैठा देखो
आज जिन्दा लाशों को इसने रुलाया है।।

न ही कोई विद्रोह ह्रदय में
न उम्मीद कोई ज़माने से है।
वादा सात जन्मों का था जो
बस अपना फ़र्ज़ निभाने से है।।

उठा देगा माझी वो सुसुप्त प्रसाशन
जो है गहरी नींद में यहां खोया है।
जब-2 व्यस्था की नींद लगी है,
तब-2 किसी अपने ने अपना खोया है।।

पुत्री के अश्क़ लहू के छलके जो मीलों
जमी को पल-पल वहाँ जलाएंगे।
घाव ह्रदय का और पदचिन्ह वो गहरे
'निरंजन' आसमा से नजर हैं आएंगे।।
 


तारीख: 02.07.2017                                    राम निरंजन रैदास









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