शीशा उठाता हूं तो तेरी आँख चमक जाती है

शीशा उठाता हूं तो तेरी आँख चमक जाती है
वफाएं लिखता हूं तो मेरी बांह लचक जाती है

तेरे फिराक में सौ मैकदे अब झूमते हैं
तेरी यादों में मेरी सौ रातें डूबा करती हैं
दीवाना कहता हूं तो मेरी जुबान ठसक जाती है
शीशा उठाता हूं तो तेरी आँख चमक जाती है

कसम बहारों की जो मेरे साथ रुका करती हैं
कसम नज़रों की जो तुझे छुप के देखा करती हैं
मैं घर को निकलता हूं तो मेरी राह बहक जाती है
शीशा उठाता हूं तो तेरी आँख चमक जाती है

किसका इन्तिजार करें किसके लिए फूल चुनें
किसके लिए आधी रातों को अब हम सज़दा करें
तेरा नाम जो सुनता हूं तो मेरी सांस कसक जाती है
शीशा उठाता हूं तो तेरी आँख चमक जाती है


तारीख: 20.06.2017                                                        आयुष राय






नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है