मृदुल कीर्ति की अभिलाषा में
जटिल प्रेम की सरल परिभाषा में
मन के संकल्प को, अरमानों को
दृढ़ मधुर मधुमय विश्वासों को
मन में आस जगाए चलती हूँ
स्वप्न का संसार लिए चलती हूँ
क्यों क्षणिक छलना ने तोड़ दिया?
क्यों क्रूर वेदना ने मोड़ दिया?
गहन अभिव्यक्ति के भाव लिए
मन भावन मनोहर जोश लिए
उजली पवित्र दीप लिए चलती हूँ
स्वप्न का संसार लिए चलती हूँ
क्यों नहीं समझते तुम करुणा?
कण-कण छल-छल छलती तृष्णा
तुम-मेरी अभिव्यक्ति, मेरी परिपक्वता
तुम-मेरी आसक्ति, मेरी अपूर्णता
रुदन को राग बनाए चलती हूँ
स्वप्न का संसार लिए चलती हूँ