तपिस ह्रदय की और वह विचाराग्नि
भीतर भीतर जलता है इंसान कभी-कभी,
न होता बयां सब लफ़्ज़ों से यहां
आंसू भी जला देते है इंसान कभी कभी।
न सुनी होगी कभी बगावत जेहन की
भीतर भी उमड़ता है तूफ़ान कभी-कभी
चेहरा देख न समझ आते है भाव भीतर के
शोलों का होता है शोलो सेे घमासान कभी-कभी।
हार जाना या जीतना ही फैसला न होता है,
फैसला न होना भी होता है अंजाम कभी कभी।
क्यों बदनाम करते हो आग को खुद जरा जल कर तो देखो
जल जल कर निखरा है इंसान कभी-कभी।
मुफ्त की रोटी तोड़ जो देशभक्ति का पाठ पढ़ाते हैं
शहीद को न मिलता कब्रिस्तान कभी-कभी
बेबसी है, निर्लज्जपन है ये कौन सा इंसान है
मृत है पर रोता है वो शहीद जवान कभी-कभी।
किस तरह ऊंचा होने के गुमान का
हो जाति का डंका तुम पीट रहे
अहम् में सड़क पर आ जाते है
शीषमहलो के धनवान कभी कभी।
न आंको आसुओं की ताकत को तुम ये
बारिश को भिगोने का रखते है अरमान कभी कभी।
यही तड़पना और मचलना दिल का
जानकर अंजान होता है इंसान कभी कभी।
आग न जले भेदभाव् की खाइयां है पट रही
मरहम न लगाओ तब भी गम न होता है
पर लगा लगा नमक मिर्च घाव न कुरेदने वाला
बेहतर होता है इंसान कभी-कभी।
दो पलों की सियासत भी घर बार जला देती है
कसूरवार नही होता वो शैतान कभी कभी
हर बार कब्र जमी नही होती 'निरंजन'
दिल भी बन जाता है श्मशान कभी-कभी।