तू सीख निडरता मेरे से

लाकडॉऊन का ताला है,
घर पर रहो, यह नारा है,
असमंजस में, है मन मेरा,
समझ नहीं यह पाता है,
घर  बैठे, क्यूँ भयभीत संसार,
मान के एक जीव से हार?

सीमित थी, पहले भी मैं तो,
घर चौखट की रेखा से l
पहले भी बतलाते लोग,
दूर न जाना घर को छोड़ ,
क्यूंकि,जीव विचरते हैं सब ओर l

मास्क नहीं, पर घूंघट पहने,
जब  निकली , मैं हिम्मत जोड़,
जो जीव नहीं दिखते औरों को,
वह जीव मुझे पर दिखते थे,
घात लगाए बैठे होते,
चौक पे, चौबारों पे,
नहीं चूकते थे वह अवसर,
मुझे हताहत करने का,
नहीं चूकती मैं भी अवसर,
मन सशक्त कर बढ़ने का l

नहीं क्षति हो सकती मेरी,
बिन मेरे मन आज्ञा के;
ना व्यर्थ में यह तू डर बढ़ा, 
मुझसे भी तो, कुछ समझ जरा l

दीवारों में बंद रहकर भी,
कैसे,मैंने यह भार ढला;
मृत मौन में जी कर भी,
कैसे, मन को वशीभूत किया;
कुटुंब प्रेम में खो कर भी,
 कैसे, अपने को परिपूर्ण किया I
 
 सच है कि,
बिन साहस के नहीं मिलता,
 जननी बनने का सौभाग्य भला।
 
 जीव, बहुत से आयेंगे,
 तू  सीख निडरता मेरे से।


तारीख: 27.02.2024                                    नमिता त्रिपाठी






रचना शेयर करिये :




नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है