यूँ ही कट रहे हैं जीवन के नीरस दिन अनायास

यूँ ही कट रहे हैं जीवन के नीरस दिन अनायास
न कोई आरजू है न कोई ख़ुशी और ना ही प्यार
दर्द इतने मिले हैं की अब दोस्ती सी हो गयी है
तन्हाई और खामोशियों से

वक्त बदला मौसम बदले
गमे दिल का आलम बदलता नहीं
न रूठते हैं हम और न गम हमसे रूठा है कभी 
नम है मेरी आखे आंसुओं के धार से 
खामोश लब मुस्कुराते नहीं अंगार से

शिथिल पड़ गए अंग सभी मृतक समान
चल रही सांस पर देह है निष्प्राण
भाव न कोई बचा ह्रदय कुन्ज में
मस्तिष्क भी विकल हुआ दुखो के रंज में 

सुन्दर सुबह, सुहानी शाम अब न लुभाएगी कभी 
मंद मंद मुस्काती पवन, वर्षाकण और मधुवन
व्यर्थ है ये सभी


तारीख: 11.06.2017                                    सत्येन्द्र प्रताप सिंह‬









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