मेरे अनुरोध पर भी जब तू ना आई थी।
पर तेरी याद में बारिश जरूर आई थी।
आँखों से झर-झर बूंदे बह निकली,
जैसे धरा को भी प्यास लग आई थी!
तू ना आई पर तेरी याद बहुत आई थी।।
धरा धूप से दहक रही थी।
मेरे दिल की धड़कन सिसक रही थी।
तभी बिजली गड़गड़ाई थी,
अपनी धरा के लिए बादलों ने बरसात कराई थी!
तू ना आई पर तेरी याद बहुत आई थी।।
धरती की प्यास तो बुझ गई।
पर विरह में मुझमें आग लग गई।
दिल-ओ-दिमाग में बस एक ही बात समाई थी,
तपती भूमि की बेचैनी मिटाने तो बरखा भी आई थी!
फिर ऐसा क्या हुआ कि....
तू ना आई सिर्फ तेरी याद ही आई थी।।