तुम्हें पता ही नहीं चला
कब नफरत बाँटते- बाँटते
तुम्हारा दामन काँटों से भर गया,
तुम्हारी आँखें भिखारी के कटोरे की तरह
नींद से हमेशा ही खाली रहीं
पर कारण तुम पकड़ न पाये
और नींद को छोटी छोटी गोलियों में
घोल कर पीते रहे
पर सब फ़िज़ूल
क्योंकि निंदा करते करते
कुढ़ते, घुटते और
कड़वाहट उगलते उगलते
कब तुम्हारी ज़ुबान से हारकर
सर्प अपनी प्रजाति के लुप्त हो जाने के भय से
काँपता अपनी पूँछ का झुनझुना बजाता रहा
पता ही नहीं चला,
और लोग समझते रहे कि
वो तुम पर या किसी तुम जैसे पर
फुंफकार रहा है,
बेचारा! आखिर किसी और की गलती की सज़ा
पाकर मारा गया।
पर अब तुम्हारे पास भी तो कुछ बचा नहीं
दूसरों को खिलते देख
तुम्हारे होंठ सूखते गए
तुम मुस्कुराना भूल गए।
अब भी समझो
अपने अंदर छिपी इर्ष्या को
खनकर उखाड़ फेंकों,
सुनो ये उतना भी कठिन नहीं
जितना सुनने में लग रहा,
दामन में फूल भरो
और लुटाओ
रस सिक्त होंठों से मुस्कुराओ
फिर सो सकोगे
सुकून की छाँव तले
जैसे कोई बच्चा सोता है
माँ के हाथ से सिले हुए
बिछौने पर।