रिश्ता तेरा-मेरा

तेरी आँखों से चुरा के काजल,
मैंने कितनी ही शब संवारी है..
ज़िन्दगी से तेरी ले इक टुकड़ा,
अपनी ये ज़िन्दगी निखारी है..


छूट जाऊँ न तन्हा इस डर से,
बस तेरे साथ साथ चलता हूँ,
भूल जाता हूँ अपनी हस्ती मैं,
तेरे जैसा हो तुझ में ढलता हूँ,


और कहीं न कहीं तेरे दिल में,
तू भी मुझको छुपाये बैठी है,
रात को जाग कर सितारों से,
मेरे किस्से बताये बैठी है..


नाम लिखती है चुपके से मेरा,
उसे छूती है,काट देती है,
रात को करवटों में रख तू भी,
मेरी यादों से पाट देती है..


तूने भी चादरों की सिलवट पर,
मेरा चेहरा उकेर रखा है,
अपनी आँखों की छोटी डिबिया में,
तूने भी इश्क़ ढेर रखा है...

 


तारीख: 17.03.2018                                                        तन्मय ज्योति मिश्रा






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