त्योहार नही,पहचान नही,
घर के सीता का मान नही।
वह सीता थी सती सदा,
ये नजरें सीता को घूर रहीं।।
असत्य के साथ था भले खड़ा
पर मर्यादा पर कायम था
सीता को आश्रम रखा मग़र
नारी सम्मान पर क़ायम था।।
तू जला रहा जिस रावण को,
उसने विद्वता की मिसाल रखी।
पाल रहा जिस रावण को,
उसकी नजरें सीता पर टिकी।।
हर घर मे पलता है रावण
घर-घर मे पैदा सीता है
कास जलाता उस रावण को
जो सीता को डंसता है।।
आज की सीता बिलख रही,
शोषण और अत्याचार बढ़े।
घूर रहा जिस सीता को,
उससे मर्यादा के नाम जुड़े।।