'बोनसाई' की तरह, छोटी अवस्था में ही,
होकर परिपक्व खड़ी हो जाती हैं।
अपने पिता का भी ख्याल रखती हैं माँ के जैसे,
ये बेटियाँ कितनी जल्दी बड़ी हो जाती हैं।
एक-एक व्यक्ति को रखती हैं जोड़कर,
ये तो जैसे रिश्तों की कड़ी हो जाती हैं।
बाल्यावस्था में ही बातें करती हैं नानी जैसी,
ये बेटियाँ कितनी जल्दी बड़ी हो जाती हैं।
शादी करके जाती हैं ससुराल,
वहां सबके लिए खुशियों की लड़ी हो जाती हैं।
पूरे घर को देती हैं, अपनी ममता की छाँव,
ये बेटियाँ कितनी जल्दी बड़ी हो जाती हैं।
रोज़ समय पर जगती जगातीं,
वो तो जैसे घड़ी हो जाती हैं।
सूर्य और चन्द्रमा को भी देने लगतीं हैं टक्कर,
ये बेटियाँ कितनी जल्दी बड़ी हो जाती हैं।