ये समय की कैसी आहट है

ये समय की कैसी आहट है, 
हर वोर बस घबराहट है। 

हवा में जहर का कोई कतरा है, 
सांस लेने मे भी बहुत खतरा है। 

हर तरफ इक अजीब सी खामोशी है , 
चुप हैं सब और थोड़ी सरगोशी है। 

लोग हर उम्र के रोज़ मर रहे, 
जो ज़िंदा हैं खौफ मे हैं और डर रहे । 

डॉक्टर जो भगवान बन लड़े हैं, 
वो भी हाथ जोड़े असहाय से खड़े हैं। 

अस्पतालो में जगह नहीं लंबी कतार है, 
सड़को पे दम तोड़ रहे लोग बस हाहाकार है। 

दवा जो जीवन देती थी अब साथ छोड़ चली, 
जिंदगी जिंदगी से जैसे मुह मोड चली। 

मानवता हर रोज़ हार रही है, 
रिश्ते नाते सबको मार रही है । 

किसी अपने का फोन जो देर रात बज उठता है, 
दिल बैठ जाता है मन सिहर उठता है।

जाने कितने खूबसूरत लोग नहीं रहे, 
जो रह गये उन्होंने भी कितने दुख सहे। 

अब भी मृत्यु का ये खेल नहीं रुक रहा, 
काल का मस्तक तनिक भी नहीं झुक रहा। 

समशानों मे चिताए जल रहीं धुंआ उठ रहा, 
कोई मईयत की दुआ पढ़ रहा, कहीं जनाजा उठ रहा। 

दुनिया बनाने वाले अब  तेरा ही सहारा है, 
प्रयास सबने बहुत किया पर हर कोई  हारा है। 

भूल जो हुई हो हमसे अब माफ करो, 
हवा मे जो गंध फैली उसको अब साफ करो। 

काल को दो आदेश की अब रुक जाए, 
जीवन के आगे  मृत्यु अब झुक जाए। 

बहुत लंबी रात रही अंधेरा अब दूर करो, 
सूरज की नव किरणों से तम का अहं अब चूर करो। 

थम गयी जो सरिता वापस अपनी लहरों को उबारे, 
साफ कर अपने सफ़ीने मांझी भी उठा सकें पतवारें। 

सहम गयी जो जिंदगी वापस अपने पंख पसारे, 
जीत जाएँ सबके हौसले और दुख सबके अब हारें। 


तारीख: 15.04.2024                                    हनुमान गोप









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