मृत्यु की आहट

Hindi Kavita Shaitya Mnajari

शब्दों के झंकार में
मौत की आहट सुनकर
घबराकर जागता हूँ
नींद से
सबकुछ छुट रहा है
हरपल
बाहर निकल आता हूँ
दूर तक क्षितीज में
निहारता हूँ
और सोचता हूँ
मैं किसी सपने में हूँ
या कहीं और
अपने जीवित होने में ही
मुझे संदेह होता है
अपनी छाती में छामकर
निश्चिंत होता हूँ
धड़क तो रहा है
भीतर कुछ
क्षीतिज में उजाले का
रमझम देखकर
सोचता हूँ
यह भोर की आगाज है
या शाम की।


तारीख: 04.01.2024                                    वैद्यनाथ उपाध्याय









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