शिव एक विरोधाभास

शीश पर जहाँ जग को शीतलता प्रदान करने वाला 'चंद्र' विद्यमान है, वहीं 
ललाट पर जग को भस्म कर देने वाली 'तीसरी आँख' | जटा में खल-
खलिहानों और मानव-समाज को अमृत-रुपी जल से तृप्त करने वाली पतित-
पावनी 'गंगा' हैं, तो गले में गरल को संचित रखा विष-धर 'सर्प' |

'शिव' को जहाँ एक तरफ सृस्टि को 'संहारक' के रूप मे हम जानते हैं, वहीं 
सागर-मंथन से निकले हलाहल विष-पान कर विश्व का 'कल्याण' (शिव का 
शाब्दिक अर्थ) करने वाले के रूप मे भी| जिन हाथों को संसार के प्रलय और 
विनाश की बाग-डोर सौंपी गयी, उन्ही हाथों ने संसार को बचाया भी| देव,नर 
और राक्षस जिनकी इन रात आरधना करते हों, वो शिव एक मानव (मर्यादा 
पुरुषोत्तम राम) को अपना आराध्य मानते थे| 

राम शिव के आराध्य और शिव राम के | ऐसा विरोधाभास कहीं और मिलना 
दुष्कर है| अपने भक्त बाणासुर की रक्षा के लिए, विष्णु के अवतार 'श्री-कृष्ण'
से युद्ध करने वाले शिव ही तो थे और अपनेभक्त 'रावण' के शत्रु की आराधना
करने वाले भी |

शिव से बड़ा धनुर्धारी नहीं कोई | त्रिपुरा के ३ महलों को 'पिनाक' धनुष से 
एक ही बाण में ध्वस्त करने वाले 'त्रिपुरारी' शिव ही थे| 'अर्जुन' को बालक 
की तरह हराने वाले और सर्व-श्रेष्ठ धनुर्धारियों (भीष्म,कर्ण और द्रोणाचार्य) के
गुरु 'परशुराम' के गुरु भी शिव ही थे|'तांडव' जैसा नृत्य करने कर के नृत्य-
सम्राट 'नटराज' के उपाधि से अलंकृत शिव ही हैं| युद्ध-कला (पौरुषता का 
प्रतीक) और नृत्य-कला (नारीत्व का प्रतिमान) मे प्रवीण 'अर्ध-नरीश्वर' शिव
को नमन | 

अविनाशी 'शिव' और नश्वर 'सती' का गठबंधन भी अपने आप मे एक 
विरोधाभास ही तो है | हमेशा 'मौन' हो कर सदियों तप करने वाले शिव के 
लिए कोई क्या लिख पायेगा, 'अक्षर-ज्ञान' की उत्पत्ति भी डमरू के नादों 
(माहेश्वर-सूत्रों) से ही हुई है| 'शिव' विरोधाभास का वो उन्मुक्त आकाश-गंगा 
हैं, जिस के प्रकाश से ये समस्त विश्व प्रकाशमान है | 


तारीख: 08.06.2017                                    सौरभ पाण्डेय









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