पोस्टर युग

आज का युग विज्ञापन का युग है। जो दिखता है वो बिकता है, इसी कहावत को
सत्य मानकर हर कोई आज बस दिखना चाहता है, चर्चा मॆं रहना चाहता है। बात अगर राजनितीक क्षेत्र की
हो तो वहाँ दिखना, चर्चा में रहना अनिवार्य है। बस ऎसॆ ही प्रर्दशनप्रीय महानुभावों की आवश्यकताओं को
ध्यान मॆं रखतॆ हुए विज्ञान नॆ एक सस्ता और सुलभ माध्यम उपलब्ध कराया है “पोस्टर”।
गाँव, शहर, महानगर के हर गली चौराहो में हर जगह ये पोस्टर भरे पडे है। ट्रॅफीक
सिग्नल, स्ट्रीट लाईट के खंबो से लेकर महंगे अपार्टमेंटस, शॉपींग मॉल्स तक इनकी पहुँच है। गाँव, शहर में
प्रवेश करते ही ये भव्य पोस्टर आपका स्वागत करते है, साथ ही स्थानीय रुलिंग पार्टी और कद्दावर नेता के
साथ-साथ ऐसे नवयुवकों से आपका परिचय करवाते है, जो राजनिती में अपना करियर बनाने के इच्छुक होते
है। वे अति महात्वाकांक्षी होते है, और इसी अति महात्वाकांक्षा के कारण वे बेचारे कम पढ-लिख पाते है।
राजनिती के इन उभरते और उबलते हुऐ सितारों के लिऐ पोस्टर एक स्वंयनिर्मीत मंच होता है, जो स्वंय को
जनता पर थोपने का एक सशक्त माध्यम है।
ऐसे अतिउत्साही, जोश से भरे हुए युवा नवनेता पोस्टर छपवाने का कोई अवसर
अपने हाथ से जाने नहीं देते। भारत जैसे विविधताओं से भरे देश में ऐसे मौके भी इन्हें बहुतायत से मीलते
है। “लेने से देना धन्य है” पवीत्र बाईबल के इस वचन को ऐसे नेता अपना मूलमंत्र मानकर चलते है, और
जनता जनार्धन को अपनी शुभकामनाऐं बाँटते फिरते है। दिवाली, ईद, होली तो ठिक है नागपंचमी तक की
शुभकामना देने से ये नवनेता पीछे नहीं हटते। स्वंय कभी पंचायत का चुनाव भी ना जीत सकने वाले ये
नवनेता अमेरिकन राष्ट्रपती को चुनाव जीतने पर बधाई देना अपना धर्म समझते है। कोई विधार्थी मेरीट में
पास हो या विश्वकप में भारतीय टीम की जीत ये महानुभाव उन्हें अपने पोस्टर में स्थान देकर धन्य करना
नहीं भुलते।

स्थानीय विधायक या मंत्री महोदय के जन्मदिन का पोस्टर तो ऐसे प्रतिभावान युवा
नेताओं लिये अपार संभावनाओं का मंच होता है। ईन पोस्टरों में अधिक से अधिक कार्यकर्ताओं की तस्वीरें
लगाकर वे स्थानीय चुनाव के लिये गुप्त रुप से अपनी दावेदारी पेश करते है। उन अनगिनत तस्विरों की भीड़
में कुछ महाशय ऐसे भी होते है, जिन्हें गाँव तो क्या उनकी कॉलोनी तक नहीं जानती ये वो व्यक्ती होते है

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जो ईन पोस्टरों में स्थान पाकर स्वंय को धन्य समझते है, और भारतीय राजनिती में मेरा भी कुछ योगदान
है, ईस भ्रम में रहते है।

भारतीय राजनिती में प्रमुख स्थान प्राप्त करते जा रहें इन पोस्टरों की विशेषता होती
है उसमें छपी नेताओं की तस्वीरें। पोस्टरों में तस्वीरें छापने के पीछे भी एक विज्ञान काम करता है। तस्वीरों
के आकार को देखकर आप अंदाज़ा लगा सकते है की वह व्यक्ती पार्टी में कितना महत्त्वपुर्ण है। पोस्टरों में
तस्वीरों का आकार और पार्टी में बंदे की महत्त्वपुर्णता सम प्रमाण में बढ़ती जाती है। हाँ कभी-कभी कोई वीर,
अतिमहत्त्वाकांक्षी नेता इस अलिखीत नियम को तोड़ता हुआ स्वंय की तस्वीर पार्टी प्रमुख और मंत्री तो क्या
देवताओं से भी बड़ी छपवा देता है। जिसका परिणाम आलोचनाओं और उपेक्षाओं के रुप में उसके सामने आ
जाता है।

पोस्टरों में छपे उन स्वंयघोषीत युवा लोकप्रीय नेताओं के चित्रों को देखकर भी आप
उन के चरित्र का मुल्यांकन कर सकते है। पहले प्रकार की तस्वीरें वे होती है जिनमें नेता दोनों हाथ जोड़कर
चेहरें पर स्मित हास्य लीये हुए होता है। इस प्रकार की तस्वीर छपवाना उस नेता की राज़नितीक
अनुभवहीनता का परिचय देता है क्योंकी जो नेता स्वंय को जनता का सेवक समझकर उनके सामने अपने
दोनों हाथो को जोड़े वो नेता ही कैसा ? दुसरे प्रकार के चित्रों में नेताओं के वे चित्र आते है जिनमें वे कहीं
और देखते हुए पाए जाते है। इस प्रकार के चित्र उन नेताओं का अनुभवी होना प्रकट करता है, जो जनता की
समस्यओं से ध्यान हटाकर अपना राजनितीक जीवन चमकाना जानता हो। तीसरे एवं सर्वोत्तम प्रकार के चित्र
वे होते है, जिसमें नेता फोन पर बात करता हुआ नज़र आता है। ऐसे चित्र छपवाने वाले नेता प्रदर्शनप्रिय और
स्वंयकेन्द्रीत होते है, जो जनता की कभी ना खत्म होनेवाली समस्यओं से अपना ध्यान पुरी तरह हटाने में
सक्षम हो जाते है। ऐसे ही नेता राजनिती में आने के योग्य होते है। जो देश को एक उज्ज्वल भविष्य की
ओर ले जा सकते है।

भारत के सहिष्णु और सर्वधर्म समभाव के दर्शन भी पोस्टरों में ही होते है। जहाँ ये
युवा नेता होली, गुरु नानक जयंती, ईद से लेकर क्रिसमस तक की शूभकामना देने में तत्पर रहते है। होली के
बाद पोस्टर का महत्त्व कम ना हो इसलीये वर्ष के अंतिम पर्व क्रिसमस को भी ये नेता अपने पोस्टर में स्थान
दे देते है। पर कुछ सच्चे, देशभक्त और शांतीप्रिय नेता पोस्टरों को भी भगवा, हरा, नीला रंग देकर
सांप्रदायिकता बनाये रखना चाहते है। जिससे समाज में प्रेम, शांती, भाईचारा, सौहाद्रय जैसी गलत चीज़ों को

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बढ़ावा ना मीलें और उन्हें आंदोलन, चक्का ज़ाम, भड़काऊ भाषण और (राजनिती के लीये अत्यंत आवश्यक
चीज़) धार्मीक स्थलों की तोड़फोड़ करके समाज़सेवा का अवसर मीलता रहें।
इस प्रकार एक साधारण से पोस्टर में पूरी भारतीय राज़निती समा जाती है। इन्हीं पोस्टरों से
मार्गदर्शन पाकर हम जैसे साधारण मतदाता “अबकी बार किसकी सरकार” इस कठिण प्रश्न का उत्तर दे पाते
है। इन्हीं पोस्टरों से हम अपने भावी हुक्मरानों का दर्शन कर पाते है और ज़ान पाते है की अबकी बार चाबुक
किसके हाथों में होगा। धन्य है हम जिन्हें इस महान पोस्टर युग में जिने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है....


तारीख: 22.09.2017                                    प्रमोद मोगरे









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