आईना

बेसुध हूं मैं, मेरे इर्द गिर्द तुम न घूमा करो

मेरे सा यहां अब तोड़ता कौन है

 

हुनर ये सीखा है हमने भी किसी बेवफ़ा से

तालीम में फिर ये सीखता कौन है

 

यूं टूटा था कुछ आंसू गिरते थे समेटने में

बस देखते है अब जोड़ता कौन है

 

ढह जाने देता मैं आज दीवार ये दिल की

पर दूसरी तरफ ये खड़ा कौन है

 

मुलाकात होगी उनसे भी कभी राहों में

देखेंगे वो भी ये आईना कौन है


तारीख: 07.07.2025                                    अभय सिंह राठौर




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