
बिछड़ते वक़्त थीं खामोशियाँ,
आँसुओं की आवाज़ें कहाँ होती हैं
चलते-चलते पहुँचे इतना दूर,
दूरी फिर कहाँ दूर होती है
बज़्म में था वो साथ मेरे,
तन्हाई भी अब कहाँ दूर होती है
मक़बूल हुए इस क़दर,
सबको भाए ऐसी क़िस्मत कहाँ होती है
मिलने को तो सबको मिलता ‘हबीब’,
सबकी लकीरें इक-सी कहाँ होती हैं।