
मुख्तसर सी बात का इंतज़ार लम्बा है,
बात इतनी अच्छी नहीं, जितना ख़याल अच्छा है
बोलते-बोलते कहीं गुम हो जाता है,
ज़ुबान से ज़्यादा आँखों से बोलना अच्छा है
उसकी तक़दीर में लिखा है कोई,
ये ख़याल, ख़यालों में भी नहीं अच्छा है
इतनी तफ़्तीश करता कौन है,
झूठ हो, सच हो — बस हो, अच्छा है
उसका नाम मेरे साथ कहीं भी हो सकता है,
दीवारों में, दरख़्तों में, लकीरों में ज़्यादा अच्छा है।