एक ही ख़बर का डर

हर रात जगाता है एक ही ख़बर का डर,
सुबह की इनबॉक्स में ठंडी-सी ख़बर का डर।

 

EMI, किराया, दवाएँ, स्कूल-फ़ीस का जोड़—
हर माह बजट में बचत की कसर का डर।

 

मीटिंग में मुस्कान के पीछे काँपे दिल,
बॉस की बदलती हुई बे-लफ़्ज़ नज़र का डर।

 

रसोई में महँगाई उबलती रहे धीरे,
राशन से कटती हुई रोज़ाना बसर का डर।

 

बच्चों की नयी कापियाँ, उगते हुए सपने—
अधूरा कहीं रह न जाए उनका सफ़र का डर।

 

कॉरिडोर में उड़ती है छँटनी की सरगोशी,
लिफ़्ट में घुसते ही किसी नई Rumour का डर।

 

खाता अगर हो जाए लाल, कॉल करें बैंक—
नंबरी निगाहों में फँस जाने नज़र का डर।

 

रोज़ाना सँवारें हम LinkedIn पे Skills—
घर में कभी देनी न पड़े ऐसी ख़बर का डर।


तारीख: 09.08.2025                                    मुसाफ़िर




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