अँधेरों में भटकना चाहता हूँ

अँधेरों में भटकना चाहता हूँ
उजालों को परखना चाहता हूँ

ये अंगारे बहुत बरसा रहा है
मैं सूरज को बदलना चाहता हूँ

हवा ये क्यों अचानक रुक गई है
मैं थोड़ा-सा टहलना चाहता हूँ

कई दिन से तुम्हें देखा नहीं है
मैं तुमसे आज मिलना चाहता हूँ

सड़क पर तो बहुत मुश्किल है चलना
मैं गलियों से निकलना चाहता हूँ

ये रूपया तो फिसलता जा रहा है
मैं गिरकर फिर संभलना चाहता हूँ


तारीख: 15.06.2017                                    डॉ राकेश जोशी




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