बेचैनी का सबब

चमक उठती है आँखे , जब दीदार-ए-यार होता है।
साँसे हो उठती है बेचैन,जब सच्चा प्यार होता है।

धडकन भी  रूकती है , साँसे  भी  उखड़ती है
जब  आँखो से  इश्क का , इज़हार होता  है।

कहते हम  भी नही कुछ , वो भी खमोश रहते है
लफ्ज  मायने  नही रखते , रूह से इकरार होता है।

क्यों  पूछते  हो  यार , मुझसे सबब बेचैनी का
मेरी रूह में दफन वो शख्स, शर्म से तार-तार होता है।

ये  आँखे बेवजह  तो , सुर्ख  नही  होती
दिल भी रोता  है  जब , खफा  यार होता है।

सुनाई देगीं उन्हीं को, ये  सिसकियाँ   मेरी
जो रोज  दर्द - ए - इश्क से , दो चार होता  है।

माना लोग यूँ ही तो , उसे  छूने से  गुरेज नही करते
पर खुद भी  बहुत   जलता  है ,  जो   अंगार होता है।

खुद दर्द सहता है , उसे खुश देखने की  खातिर
ये  रोगी  इश्क  का , बड़ा  दिलदार   होता   है

"राम"  क्या कोई  भी  , शख्स  बेचैन हो  जाए
लव  खमोश करना हो , पास  जब यार होता है।


तारीख: 16.06.2017                                    रामकृष्ण शर्मा बेचैन









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