ग़ज़ल

जो पेड़ बसंत में दिखता है हरा सा ,

अन्दर से होता है बिल्कुल मरा सा |

ज़माने में मिलावट का ये आलम है ,

मुश्किल है मिलना इंसान खरा सा |

जो गैरों के लिये सीने में दरक झेले , 

कोई निस्वार्थ नहीं है यहां धरा सा |

बच्चों के पेट में निवाले हैं जाते पर ,

माँ को अपना पेट लगता है भरा सा |

जीवन को मतलब भी मिल जायेगा ,

प्यार का तुम बन के देखो झरा सा |

भले हर इंसान खुश लगता है अपूर्व ,

पर हर इंसान है अन्दर से डरा सा | 

अपूर्व "आकर्षण"

झरा - झरना, स्रोत, सोता


तारीख: 09.02.2025                                    अपूर्व "आकर्षण "




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