कोई रुकता है संभलता है फिर भी आगे बढ़ता है

कोई रुकता है संभलता है फिर भी आगे बढ़ता है
ताबीरे ख़्वाब की कोशिश में गिरते पड़ते चलता है

वो उसको रोकते रहते हैं पीछे से आहें भरते हैं
बेकार किये उन आहों को कसमों की बाते करता है

वो जानते हैं पा जायेगा जो अपनी जिद पे आएगा
जोशे जवानी चंगुल में पत्थर हर एक पलटता है

वो भी हार कहाँ मानें अवरोध नए हर रोज लगाते हैं
वो भी आखिर आशिक है पानी सा काट निकलता है

सच्चे झूठे की हुज्जत में जो अपना ईमान संभाले है
वो ही कुछ करके गुजरता है हरदम वो आगे बढ़ता है


तारीख: 19.06.2017                                    आयुष राय









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