तन्हा तन्हा कटा सफ़र तो क्या
भीड़ का भी न हुआ असर तो क्या
दोस्तों का मुझे भी अरमाँ है
अबनबी सा है ये शहर तो क्या
जानिबे मंजिलो के चलना है
जेठ की हो वो दोपहर तो क्या
राहेरौ हूँ मैं कू-ए -यार की जानिफ
सख्त बरहम हो गर डगर तो क्या
जब तलातुम काख़ौफजातारहा
कश्ती हो दरम्यॉ भँवर तो क्या
अनिल