तुम्हारे लटों का माथे पर बिखर जाना

तुम्हारे लटों का माथे पर बिखर जाना,मुझे समझ में आता है
और फिर बिना कुछ कहे ही उतर जाना,मुझे समझ में आता है

क्या करे फौजदारी और क्या करे कोई मुक़दमा तुम्हारे बेपरवाह हुश्न पर
हुश्न का वक़्त-बेवक़्त बदगुमान होते जाना,मुझे समझ में आता है

ये बेकार की है सब तोहमतें जो तुम पर लगाई जा रही हैं
दिलजलों के दिल का यूँ  ही फिर जलते जाना,मुझे समझ में आता है

अब किसको-किसको समझाने जाती रहोगी तुम जमाने भर में
इस जहाँ का रोज-रोज ही कुछ बीमार होते जाना,मुझे समझ में आता है

बन्द होनी चाहिए वजह-बेवजह हर दफे हुश्न की पहरेदारी 
वर्ना,चौक-चौराहों पर समाज का   बेइज़्ज़त होना,मुझे समझ में आता है


तारीख: 26.01.2020                                    सलिल सरोज




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