टूटते  तारों  की  रुसवाई  बुरी  लगती  है 

टूटते  तारों  की  रुसवाई  बुरी  लगती  है 
हमको अब खुद की ही तन्हाई बुरी लगती है 

दर्द बेबसी और ख़ौफ़ के इस  मौसम में 
कोई करता अगर भलाई बुरी लगती है 

प्रेमिका की क्षणिक मादकता ने क्या मोहा 
जन्म देने वाली   वो माई बुरी लगती है 

शहर की आबोहवा में भी हम ऐसे खोये 
घर का आँगन वो चारपाई बुरी लगती है 

जो है हालात ए दिल उसको फिर कहने में क्या गुरेज 
खुद से खुद की ही बेवफाई बुरी लगती है 


तारीख: 18.07.2017                                    संकल्प भोले




रचना शेयर करिये :




नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है