कब जले कब बुझे

कब जले कब बुझे कुछ याद नही रक्खा
  हमने चरागों पर कभी दबाव नही रक्खा

अपनी हैसियत मे जिंदगी गुजर बसर की
अनमोल चीजों पर अपना हाथ नही रक्खा

   वो गुजरा जरूर बिल्कुल करीब से मेरे
मगर उसने भी कब्र पे गुलाब नही रक्खा

 बेतरतीब खर्च किया दिल के खजाने को
कहाँ कितना खर्च किया हिसाब नही रक्खा

और यूहीं मोहब्बत परवाज कर गईं 'आलम'
मैने कोई जबाब उसने कोई सवाल नही रक्खा


तारीख: 06.02.2024                                    मारूफ आलम









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