ये जनता है,तख़्त-ओ-ताज को उछालना जानती है

ये जनता है,तख़्त-ओ-ताज को उछालना जानती है
सत्ता के ठीकेदारों को सत्ता से निकालना जानती है

आप आज यहाँ बैठे हैं और ये  बर्षों से यहाँ बैठी है
होंठ सिल भी दो तो बंदजुबां से चिल्लाना जानती है

जला दोगे तुम इसकी बस्तियाँ सारी ,घर - बार सारे
अपनी तारीख में ये मोम के जैसे पिघलना जानती है

रोटी, कपड़ा और मकान का बहुत माखौल हो गया
अपने हक़ के वास्ते ये  तक़दीर से मिलना जानती है

बंद कर दो इन के सब चौक-चौबारे ,सभी  कश्तियाँ
यह जनता तूफानों में भी दिए जैसा जलना  जानती है
 


तारीख: 26.01.2020                                    सलिल सरोज









नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है


नीचे पढ़िए इस केटेगरी की और रचनायें