ये कैसी बेख़बरी है

Gazal shayari sahitya manjari

ये कैसी बेख़बरी है , ये कैसी बदमिज़ाज़ी है 
खुदा ही है गिरफ्त में और मौज में काज़ी है

हलक की साँसें रोकर मौत ही दिलनवाज़ी है
इसका अन्जामजदा पाँच वक़्त का नमाज़ी है 

वायदे-इरादे कुछ भी नहीं , बस लफ़्फ़ाज़ी है 
जो भी अच्छा वक़्त था,वो अब केवल माज़ी है 

औरतों का इरादा ढँका रहे , कैसी जाँबाज़ी है 
कुछ दिमाग अब भी बदसलूकी का रिवाज़ी है 

क्या दिया , जो तुम्हारे छीनने की अब बाज़ी है 
बेमतलबी ज़िद्द पर अड़ा समाज कट्टर गाज़ी है 

जितनी चाहो ,हम उतनी बार सच के हाजी हैं 
पर मसअला ये है की सुनने को कौन राज़ी है  


तारीख: 10.01.2024                                    सलिल सरोज




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