हज़ारों दर्दो-ग़म के दरम्यां हम थे

Gazal Shayari

हज़ारों दर्दो-ग़म के दरम्यां हम थे
जहाँ में अब कहाँ हैं कल कहाँ हम थे।

अभी हालात  से मज़बूर हैं  लेकिन
तुम्हारी  जिंदगी  की  दास्ताँ  हम थे।

तुम्हारी बदज़ुबानी चुभ रही लेकिन
तुम्हारे होठ पर  सीरी  जुबां  हम थे।

ये तख़्तों ताज दुनियाँ में भला कब तक
मुहब्बत ज़ीस्त है सोचो कहाँ हम थे।

मुहब्बत खो गई है नफ़रतों की भीड़ में
वो  बढ़ते भाई चारे   का  गुमाँ  हम थे।

कहीं नफ़रत कहीं उल्फ़त कही धोखा
कहीं जलते हुए  घर बेजुबां  हम थे।

कुचल डाला है जिसको वक्त बेदिल ने
ज़मीं हैं आज लेकिन आसमां हम थे


तारीख: 03.01.2024                                    आकिब जावेद




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