अब तुम्हारा रहम नहीं मुझे भी हिस्सेदारी चाहिए 

अब तुम्हारा रहम नहीं मुझे भी हिस्सेदारी चाहिए 
मुल्क  चलाने  के वास्ते मुझे भी भागीदरी चाहिए 

हर हाथ हो  मज़बूत अपने नेक इरादों को लेकर
अपना भाग्य लिखने को मुझे भी दावेदारी चाहिए

सदियों तक  हुआ राज़तंत्र  भेष बदल बदल कर
तुम्हारी नियतों  में तो  मुझे भी ईमानदारी चाहिए 

न ही लालच,न सहारा और न ही कोई होशयारी
गर हूँ वतन का हिस्सा तो मुझे भी खुद्दारी चाहिए

कैसे छल कर जाते हो हर एक अपने वायदों से 
गर अब नहीं संभले तो मुझे भी राज़दारी चाहिए  


तारीख: 07.04.2020                                                        सलिल सरोज






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