ज़मीन के हाथों की लकीर जब उकेड़ी गयी 

ज़मीन के हाथों की लकीर जब उकेड़ी गयी 
कहीं लाश,कहीं लहू,कहीं सिसक पाई गयी 

आसमान भी कोई बहुत  दूर तलक  न था
उसके दामन में भी दुखती नब्ज़ पाई गयी 

सरफिरे हवाओं के घुमड़ते  उड़ते लटों में 
ग़ुमनाम स्याह रातों की दास्तान पाई  गयी 

चाँद के पूरे शबाब का जब नक़ाब हटा तो
अमावस के परछाई  की  ज़ुबान पाई गयी 

सूरज के तेवर सारे नरम पड़ गए यकायक 
शोलों में जलाने  की  गुनाह  जब पाई गयी    


तारीख: 07.04.2020                                    सलिल सरोज









नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है