कब का चला गया वो चाँद

gazal by musafir

सपने जो थे हमारे इश्क़ के, धुंधला उनका असर गया,
कब का चला गया वो चाँद, अब रात भी उतर गया।

बादलों की ओट में छिपे थे कई ख्वाब हमारे,
जब सूरज ने दी दस्तक, हर ख्वाब बिखर गया।


वक़्त की रेत पे छोड़े थे कदमों के निशान कभी,
पल भर में वो मिट गए, जैसे कि कोई गुज़र गया।

यादों के जंगल में, रास्ता भूले थे कदम,
जो बीता था साथ में, वो पल अब गुज़र गया।


हर ख्वाहिश के पीछे, छोड़ दिया जिन्दगी को,
जब समझा ये दिल, सब कुछ तो बिखर गया।

दोस्ती की राहों में, मिले थे जो अजनबी,
उन्हीं संगी-साथियों का, आज कोई असर गया।

राहतों की बारिश में, धुल गये सभी गम,
जो चाहता था दिल, वही तो सफर गया।


तारीख: 06.04.2024                                    मुसाफ़िर









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