क्या बात हुई

क्या बात हुई आपस मे,क्या राज छुपाए हैं तुमने
तख्तों की हेराफेरी की है,या ताज छुपाए हैं तुमने

गहरी कब्रों से निकलेगा,कल के मलबों का वो ढेर
जिसकी कोख मे ढेरों,जो आज छुपाए हैं तुमने

चिड़ियों के ये सहमे जत्थे उन्हें देख चुके कब का
दरख्तों की टहनियों पर जो बाज छुपाए हैं तुमने

हिजरत के सफर मे वो भी बडे़ दाम के हो जाऐंगे
कुओं की तलहटियों मे जो माज छुपाए हैं तुमने

एक एक टांका होकर सब धीरे धीरे फिर उधड़ेंगे 
अपने गुनाहों के उधड़े जो काज छुपाए हैं तुमने


तारीख: 05.02.2024                                    मारूफ आलम









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