मित्रता

मित्रता नहीं अदावत कैसी।
जनता नहीं बगावत कैसी।।

गुलशन में फूलों के खातिर,
अलि की हुई शहादत कैसी।

नहीं गगन में बादल बिजुरी,
तो फिर हुई कयामत कैसी।

हम हैं हुए साधु सन्यासी,
मिलने लगी नियामत कैसी।

हम सपूत हैं इस कुटुंब के,
लेकिन हमें रवायत कैसी।
 


तारीख: 20.02.2024                                    अविनाश ब्यौहार









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