रास्ता खस्ता

रास्ता खस्ता देखकर बदल गया वो
शुक्र है वक़्त रहते ही संभल गया वो

मेरी राह का कांटा था वो एक शख्स 
मेरे वजूद को बहुत ही खल गया वो

बारूद का एतबार कर बैठे थे पागल
हवा की जद मे आया तो जल गया वो

उस काफिर की शोबदेबाजी तो देख
जरा सी बात पे बुतों मे ढल गया वो

धुंध सा कहीं छाया है जहन मे'आलम
आंखों मे है यादों से निकल गया वो

 


तारीख: 09.02.2024                                    मारूफ आलम









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