सूख कर जब टूट जाता

सूख कर जब टूट जाता है शजर
बा'द फिर चूल्हे जलाता है शजर

छोड़ जाते हैं परिंदे एक दिन
आस में रिश्ते निभाता है शजर

बाँटता है हर ख़ुशी अपनी मगर
ग़म सभी अपने छुपाता है शजर

फल लगे होते हैं जिस की शाखों पर
आदतन वो झुक ही जाता है शजर

जब सफ़र को याद करता हूँ कभी
बस मुझे इक याद आता है शजर


तारीख: 22.02.2024                                    डॉ सतीश सत्यार्थ









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