तेरी आँखों का सागर

तेरी आँखों का सागर हो गया हूँ
ख़ुदा जाने ये क्योंकर हो गया हूँ।

किसी डाली से पत्ते की तरह टूटा
उसी पत्ते का  मंज़र  हो गया हूँ

बहुत नाक़ाम था नाशाद था लेकिन
तेरी सोहबत से बेहतर हो गया हूँ।

तुम्हारी इक हँसी पर जान भी दे दूँ
तुम्हें  पाकर मैं  सुंदर हो  गया हूँ।

तेरे मिलने से पहले कुछ नही था
तेरे मिलने से बेहतर हो गया हूँ।

तुम्हारे हिज़्र का ग़म कैसे मैं भूलूँ
कि दिल मे ज़ब्त नश्तर हो गया हूँ।

लिया था  सर्द रातों  ने  जो बाहों में
तेरे बोसे की गर्मी पे निछावर हो गया हूँ।
 


तारीख: 08.02.2024                                    आकिब जावेद









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