बेबसी

ना सुन इस दिल की ए-नादान, ये तेरे को ही मरवाएगा
जो ये बेचैनी है रूह में, क्या हासिल उसे तू कर पाएगा
रात के टिमटिमाते तारों को तू यूँही तकता रह जाएगा
चाँद में अपने महबूब का चेहरा ढूँढता ही जाएगा


पथराई आँखों से एक बूँद भी बहा ना पाएगा
सुबह का केसरी सूरज भी दिल की बेचैनी को बढ़ाएगा
ठंडी हवा का झोंका उसके बदन की खुशबू की याद दिलाएगा
ना समझ सकेगा कोई तेरी मोहब्बत के इस जुनून को
तेरा अक्स भी तुझे इस हाल में ना देख पाएगा


दर-दर भटकेगा तू और बस ठोकरें ही तू खाएगा
साँस भी अगर गई उसके इंतज़ार में तो
मजनू की तरह पत्थर ही तू खाएगा


 


तारीख: 20.10.2017                                    पृथ्वी बहल




रचना शेयर करिये :




नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है