अस्तित्व

अपने अस्तित्व को खोना चाहता हूं
नाला हूं,नदिया में मिलना चाहता हूं
अथाह सागर में कोई किश्ती ना थी
लहरों से लड़ना चाहता हूं
हवाएं हमेशा मेरे विपरीत बही हैं
खड़े रहने का माददा चाहता हूं
कैद रहा, हीनता में जिंदगी भर
अब आत्मविश्वास से भर जाना चाहता हूं
कल्पनाओं में खोया रहा जिंदगी भर
आईना अब देखना चाहता हूं
अकेला चला था, दुर्गम रास्तों पर
थके हुए कदमों से मंजिल की तलाश करता हूं
जीवन भर की खानाबदोशी थी
अब स्थिरता की चाह रखता हूं 


तारीख: 23.06.2024                                    प्रतीक बिसारिया









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