बुधिया का अंडा

 


(१)
बुधिया को स्कूल जाना पसंद नहीं है
मास्टर जी का पहाड़ा रटाना, 'क' से कबूतर पढ़ाना
उसे लगता है जैसे कोई कान में पत्थर भर रहा हो।
लकड़ी की टाट पर घंटों बैठना
और खिड़की के बाहर उड़ती तितली को देखना,
उसे लगता है कि वो क़ैद है
और तितली आज़ाद।

उसके बापू को भी उसका स्कूल जाना पसंद नहीं है
बापू कहते हैं, "पढ़-लिख के राजा बनेगा क्या?
चल, बकरी चराने जंगल चल।
दो बकरी ज़्यादा बिकेगी तो पेट भरेगा,
किताब का अक्षर पेट नहीं भरता।"

(२)
लेकिन बुधिया स्कूल जाता है
खासकर उन दिनों में, जब हाट लगती है
सोमवार और जुम्मा (शुक्रवार) को।
क्योंकि उन दो दिनों में,
मिड-डे मील की खिचड़ी के साथ
एक उबला हुआ अंडा भी मिलता है।

बापू को अंडे की बात नहीं पता
उन्हें लगता है लड़का पढ़ने के लिए ज़िद करता है
और वो उसे कोसते हैं।

बुधिया चुपचाप सुन लेता है
क्योंकि वो जानता है,
बकरियों के पीछे दिन भर दौड़ने से
उसे रोटी और नमक ही मिलेगा,
अंडा नहीं।

(३)
आज जुम्मा था
बुधिया सुबह से खुश था
उसने मैली कमीज़ पहनी, बस्ता उठाया और स्कूल चल दिया।
बापू ने पीछे से आवाज़ दी, "आज भी चला पढ़ने?
शाम को लौटना तो देखना, तेरी टाँग तोड़ता हूँ।"
बुधिया रुका नहीं, भागता गया।

स्कूल में उसका मन नहीं लगा
पहाड़े गलत पढ़े तो मास्टर जी से बेंत भी खाई
पर वो रोया नहीं
बस दोपहर होने का इंतज़ार करता रहा।

जब घंटी बजी और खाना बँटने लगा
वो सबसे आगे लाइन में खड़ा था
उसकी नज़र बस उस बड़ी देगची पर थी
जिसमें से आज खिचड़ी के साथ
अंडे भी निकल रहे थे।

(४)
उसके हाथ में जब थाली आई
जिसमें गर्म खिचड़ी पर एक पूरा, उबला अंडा रखा था,
उसकी आँखें चमक गईं।
उसने अंडा उठाया, हौले से छीला
और आधा खाकर आधा जेब में रख लिया।
छोटी बहन के लिए।

उस आधे अंडे का स्वाद
मास्टर जी की बेंत की मार से ज़्यादा असरदार था
बापू की डाँट से ज़्यादा वज़नदार था।
उस स्वाद के लिए वो अगले सोमवार तक
फिर से स्कूल आने को तैयार था।


तारीख: 09.06.2025                                    मुसाफ़िर




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